द्रोपदी की कहानी सुनकर सब महिलाएं जोश में आ गईं और कहने लगीं कि इन कामांधों का यही इलाज है । और द्रोपदी के सुकृत्य की सबने भूरि भूरि प्रशंसा की ।
इसके बाद नंबर आया सुमित्रा का । सुमित्रा अपनी कहानी सुनाने लगी ।
वह एक घरेलू औरत थी । उसका पति दुकान करता था । उसकी एक बेटी थी । छोटा सा परिवार था । सब लोग हंसी खुशी से रह रहे थे ।
एक दिन उसके पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई । उस दिन से गमों का स्थाई निवास हो गया था उसके घर में । बिना पैसों के घर कैसे चलता ? कुछ न कुछ काम तो करना ही था । अपने पति की दुकान ही चलाने लगी थी सुमित्रा । इस तरह कुछ आमदनी हो जाती थी और घर का काम भी चल जाता था । बेटी आरती भी विद्यालय में पढ रही थी । जिंदगी पटरी पर लौट आई थी और उसने भी हालातों से समझौता कर लिया था ।
"नगरपालिका के चुनाव आ गये थे । लोगों ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा । मगर "टिकिट" के बिना चुनाव जीतना नामुमकिन सा था । कुछ लोगों ने सलाह दी कि विधायक महोदय से मिला जाये तो वो टिकिट भी दिला देंगे । मुझे भी वह सलाह पसंद आ गई और मैं विधायक महोदय के पास चली गई ।
तब तक मुझे ज्ञात नहीं था कि राजनीति में महिलाओं का क्या उपयोग है ? मैंने विधायक जी से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की और टिकिट मांगा तो वे हंसने लगे । उन्होंने कहा "कुछ करना होगा"
"क्या" ?
"जो तुम कर सकती हो"
"मैं क्या कर सकती हूं" ?
"बहुत कुछ । भगवान ने बहुत कुछ दिया है आपको । गुलाब के फूल की महक जितने अधिक लोग लें उतना ही अच्छा है" और उन्होंने एक कुटिल हंसी उछाल दी ।
मैं उनका आशय समझ गई । औरत चाहे और कुछ समझे या ना समझे मगर मर्द की लोलुप नजरों को अच्छी तरह समझती है । मैं वहां से चलने के लिए उद्यत हो गई ।
इतने में वे बोले "अरे, आप तो जा रही हैं । क्या टिकिट नहीं चाहिए" ?
"इस कीमत पर तो नहीं"
"तो कोई बात नहीं । आप कोई भी कीमत अदा मत कीजिए पर टिकिट तो लेते जाइये" और वे फिर से मुस्कुरा दिये ।
मैं वहीं पर बैठ गई और टिकिट का इंतजार करने लगी । धीरे धीरे भीड़ छंटने लगी और अंत में मैं अकेली रह गई ।
उन्होंने मुझे अंदर वाले कमरे में बुला लिया और मेरे साथ जबरदस्ती करने लगे । मैंने बहुत विरोध किया मगर मैं कुछ नहीं कर सकी । मैं लुटी पिटी सी वहीं पड़ी रही । उन्होंने टिकिट मेरे ऊपर फेंक दिया ।
मैंने परिस्थित से समझौता कर लिया । चुनाव भी जीत गई और पार्षद भी बन गई । अब मैं लोगों के काम कराने लगी । विधायक जी भी मंत्री बन गये थे । उनकी शक्ति और बढ गई थी । मैं उनकी "रखैल" बन गई थी ।
वे जब तब हमारे घर आ जाया करते थे और अपनी प्यास बुझाकर चले जाया करते थे । मेरी बेटी आरती कॉलेज में आ गई थी ।
एक दिन जब मंत्री जी मेरे घर में आये थे तब मेरी बेटी आरती वहीं घर में थी । उनकी निगाह आरती पर पड़ी तो उनकी नीयत डोल गई । उन्होंने मुझसे आरती की फरमाइश कर दी । एक मां यह कैसे बर्दाश्त कर सकती थी । मेरी जिंदगी तो तबाह हो चुकी थी मगर मैं अपनी बेटी की जिंदगी तबाह नहीं कर सकती थी । मैंने दृढता के साथ मना कर दिया । वे उसके साथ जबरदस्ती करने लगे । मैंने आव देखा ना ताव और एक चाकू से उन पर ताबड़तोड़ वार कर दिये । उसकी वहीं पर मौत हो गई और मुझे आजीवन कारावास की सजा । बस, यही है मेरी कहानी ।
एक बार फिर से हॉल गगनभेदी नारों से गूंज उठा ।
श्री हरि
22.10.22